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श्लोक 2.99.42  |
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तान् पार्थिवान् वारणयूथपार्हान्
समागतांस्तत्र महत्यरण्ये।
वनौकसस्तेऽभिसमीक्ष्य सर्वे
त्वश्रूण्यमुञ्चन् प्रविहाय हर्षम्॥ ४२॥ |
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अनुवाद |
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जब युवराजों के उस समूह को हाथियों पर सवार होकर उस विशाल वन में आते हुए देखा, तो वनवासी हर्ष त्यागकर शोक के आँसू बहाने लगे। |
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इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे नवनवतितम: सर्ग:॥ ९९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें निन्यानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ९९॥ |
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