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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 99: भरत का शत्रुघ्न आदि के साथ श्रीराम के आश्रम पर जाना, उनकी पर्णशाला देख रोते-रोते चरणों में गिरना, श्रीराम का उन सबको हृदय से लगाना
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श्लोक 39
श्लोक
2.99.39
बाष्पै: पिहितकण्ठश्च प्रेक्ष्य रामं यशस्विनम्।
आर्येत्येवाभिसंक्रुश्य व्याहर्तुं नाशकत् तत:॥ ३९॥
अनुवाद
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आँसुओंसे उनका गला रुँध गया था। यशस्वी श्रीरामकी ओर देख वे ‘हा! आर्य’ कहकर चीख उठे। इससे आगे उनसे कुछ बोला न जा सका॥ ३९॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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