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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 99: भरत का शत्रुघ्न आदि के साथ श्रीराम के आश्रम पर जाना, उनकी पर्णशाला देख रोते-रोते चरणों में गिरना, श्रीराम का उन सबको हृदय से लगाना
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श्लोक 33
श्लोक
2.99.33
अधारयद् यो विविधाश्चित्रा: सुमनस: सदा।
सोऽयं जटाभारमिमं सहते राघव: कथम्॥ ३३॥
अनुवाद
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जो श्रीरघुनाथजी सदैव अपने मस्तक पर नाना प्रकार के सलोने फूल धारण करते थे, वही श्रीरघुनाथजी इस समय जटाओं के इस भार को कैसे सहन कर पा रहे हैं?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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