श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 99: भरत का शत्रुघ्न आदि के साथ श्रीराम के आश्रम पर जाना, उनकी पर्णशाला देख रोते-रोते चरणों में गिरना, श्रीराम का उन सबको हृदय से लगाना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.99.30 
 
 
दृष्ट्वैव विललापार्तो बाष्पसंदिग्धया गिरा।
अशक्नुवन् वारयितुं धैर्याद् वचनमब्रुवन्॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत ने जैसे ही अपने भाई को देखा, वे विलाप करने लगे। वे अपने दुःख को रोक नहीं पाए और आँसू बहाते हुए उनकी आवाज़ भर्रा गई। वे बोले-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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