श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 99: भरत का शत्रुघ्न आदि के साथ श्रीराम के आश्रम पर जाना, उनकी पर्णशाला देख रोते-रोते चरणों में गिरना, श्रीराम का उन सबको हृदय से लगाना  »  श्लोक 25-26
 
 
श्लोक  2.99.25-26 
 
 
निरीक्ष्य स मुहूर्तं तु ददर्श भरतो गुरुम्।
उटजे राममासीनं जटामण्डलधारिणम्॥ २५॥
कृष्णाजिनधरं तं तु चीरवल्कलवाससम्।
ददर्श राममासीनमभित: पावकोपमम्॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत ने कुछ देर तक पर्णशाला की ओर देखा और फिर कुटिया में बैठे अपने पूजनीय भाई श्रीराम को देखा। श्रीराम के सिर पर जटाओं का मुकुट था और उन्होंने अपने शरीर पर कृष्णमृग का चर्म, चीर और वल्कल वस्त्र धारण कर रखा था। भरत को ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रीराम पास ही बैठे हैं और जलती हुई अग्नि की तरह अपनी दिव्य प्रभा फैला रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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