भरत ने कुछ देर तक पर्णशाला की ओर देखा और फिर कुटिया में बैठे अपने पूजनीय भाई श्रीराम को देखा। श्रीराम के सिर पर जटाओं का मुकुट था और उन्होंने अपने शरीर पर कृष्णमृग का चर्म, चीर और वल्कल वस्त्र धारण कर रखा था। भरत को ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रीराम पास ही बैठे हैं और जलती हुई अग्नि की तरह अपनी दिव्य प्रभा फैला रहे हैं।