श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 94: श्रीराम का सीता को चित्रकूट की शोभा दिखाना  »  श्लोक 8-10
 
 
श्लोक  2.94.8-10 
 
 
आम्रजम्ब्वसनैर्लोध्रै: प्रियालै: पनसैर्धवै:।
अङ्कोलैर्भव्यतिनिशैर्बिल्वतिन्दुकवेणुभि:॥ ८॥
काश्मर्यारिष्टवरणैर्मधूकैस्तिलकैरपि।
बदर्यामलकैर्नीपैर्वेत्रधन्वनबीजकै:॥ ९॥
पुष्पवद्भि: फलोपेतैश्छायावद्भिर्मनोरमै:।
एवमादिभिराकीर्ण: श्रियं पुष्यत्ययं गिरि:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  असन, जामुन, लोध, प्रियाल, कटहल, धव, अंकोल, भव्य, तिनिश, बेल, तिन्दुक, बाँस, काश्मरी (मधुपर्णिका), अरिष्ट (नीम), वरण, महुआ, तिलक, बेर, आँवला, कदम्ब, बेत, धन्वन (इन्द्रजौ), बीजक (अनार) आदि वृक्षों से, जो फूलों और फलों से लदे होने के कारण मनमोहक प्रतीत होते थे, व्याप्त यह पर्वत अद्वितीय शोभा और सुंदरता से युक्त है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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