श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 92: भरत का भरद्वाज मुनि से श्रीराम के आश्रम जाने का मार्ग जानना, वहाँ से चित्रकूट के लिये सेना सहित प्रस्थान करना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  2.92.37 
 
 
चन्द्रार्कतरुणाभासां नियुक्तां शिबिकां शुभाम्।
आस्थाय प्रययौ श्रीमान् भरत: सपरिच्छद:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीमान भरत चमकदार चाँद और सूर्य के समान दीप्तिमान शिबिका में बैठकर ज़रूरी सामग्रियों के साथ यात्रा पर निकले। उस शिबिका को कहार अपने कंधों पर उठाए हुए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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