श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 92: भरत का भरद्वाज मुनि से श्रीराम के आश्रम जाने का मार्ग जानना, वहाँ से चित्रकूट के लिये सेना सहित प्रस्थान करना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.92.30 
 
 
न दोषेणावगन्तव्या कैकेयी भरत त्वया।
रामप्रव्राजनं ह्येतत् सुखोदर्कं भविष्यति॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत! श्रीराम के वनवास को दोषपूर्ण दृष्टि से न देखो। राम का यह वनवास भविष्य में अत्यंत आनंददायक और लाभकारी होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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