श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 91: भरद्वाज मुनि के द्वारा सेना सहित भरत का दिव्य सत्कार  »  श्लोक 45-46
 
 
श्लोक  2.91.45-46 
 
 
आगुर्विंशतिसाहस्रा नन्दनादप्सरोगणा:॥ ४५॥
नारदस्तुम्बुरुर्गोप: प्रभया सूर्यवर्चस:।
एते गन्धर्वराजानो भरतस्याग्रतो जगु:॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  नारद, तुम्बुरु और गोप नामक तीन गंधर्वराज थे जो अपनी कांति से सूर्य की तरह चमकते थे। वे नंदनवन से आई हुई अप्सराओं के साथ भरत के सामने गीत गाने लगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.