श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 88: श्रीराम की कुश-शय्या देखकर भरत का स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वन में रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.88.27 
 
 
तस्याहमुत्तरं कालं निवत्स्यामि सुखं वने।
तत् प्रतिश्रुतमार्यस्य नैव मिथ्या भविष्यति॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं वनवास के शेष दिनों तक वन में सुखपूर्वक निवास करूंगा, जिससे आर्य श्रीराम द्वारा की गई प्रतिज्ञा झूठी नहीं होगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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