इस समय अयोध्या के चारों ओर रक्षा का कोई प्रबंध नहीं है। हाथी और घोड़े बंधे नहीं रहते, खुले घूमते रहते हैं। नगर द्वार का फाटक खुला रहता है। पूरी राजधानी असुरक्षित है। सेना में हर्ष और उत्साह का अभाव है। सारी नगरी रक्षकों से सूनी-सी मालूम पड़ती है। संकट में पड़ी हुई है। रक्षकों के अभाव में आवरणरहित हो गई है। इसके बावजूद भी शत्रु विषमिश्रित भोजन की तरह इसे ग्रहण नहीं करना चाहते। श्री राम के बाहुबल से ही इसकी रक्षा हो रही है।