श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.87.4 
 
 
भरतं मूर्च्छितं दृष्ट्वा विवर्णवदनो गुह:।
बभूव व्यथितस्तत्र भूमिकम्पे यथा द्रुम:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत को बेसुध देख गुह का चेहरा पीला पड़ गया। वह ठीक उसी तरह घबरा गया जैसे भूकंप आने पर पेड़ हिलने लगता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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