श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  2.87.10 
 
 
त्वां दृष्ट्वा पुत्र जीवामि रामे सभ्रातृके गते।
वृत्ते दशरथे राज्ञि नाथ एकस्त्वमद्य न:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  कौशल्या कहती हैं, "वत्स! मैं तुम्हें देखकर ही जीवित हूँ। श्री राम और लक्ष्मण वन में चले गए हैं और महाराज दशरथ स्वर्गवासी हो गए हैं। अब एकमात्र तुम ही हमारे रक्षक हो।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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