श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 86: निषादराज गुह के द्वारा लक्ष्मण के सद्भाव और विलाप का वर्णन  »  श्लोक 19-21
 
 
श्लोक  2.86.19-21 
 
 
रम्यचत्वरसंस्थानां सुविभक्तमहापथाम्।
हर्म्यप्रासादसम्पन्नां सर्वरत्नविभूषिताम्॥ १९॥
गजाश्वरथसम्बाधां तूर्यनादविनादिताम्।
सर्वकल्याणसम्पूर्णां हृष्टपुष्टजनाकुलाम्॥ २०॥
आरामोद्यानसम्पूर्णां समाजोत्सवशालिनीम्।
सुखिता विचरिष्यन्ति राजधानीं पितुर्मम॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि पिताजी जीवित रहते तो अयोध्यापुरी एक ऐसी राजधानी होती जो सुंदर स्थानों और चौराहों से युक्त होती। विशाल राजमार्ग इसे और भी शानदार बनाते। धनिकों के महल, देवमंदिर और राजभवन शहर की शोभा बढ़ाते। हर तरह के रत्न यहाँ पाए जाते। हाथी, घोड़े और रथों का आवागमन शहर को जीवंत बनाए रखता। संगीत की मधुर ध्वनियाँ वातावरण को खुशनुमा बनाती। यहाँ हर तरह की खुशहाली होती। लोग खुशहाल और स्वस्थ होते। फूलों के बगीचे और उद्यान शहर की सुंदरता में चार चाँद लगाते। सामाजिक उत्सवों से शहर हमेशा गुलजार रहता। ऐसे शहर में रहने वाले लोग निश्चित ही सुखी होते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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