श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 85: गुह और भरत की बातचीत तथा भरत का शोक  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.85.18 
 
 
प्रसृत: सर्वगात्रेभ्य: स्वेदं शोकाग्निसम्भवम्।
यथा सूर्यांशुसंतप्तो हिमवान् प्रसृतो हिमम्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसे सूर्य की किरणों के प्रभाव से तपा हुआ विशाल हिमालय अपना पिघला हुआ हिम छोड़ने लगता है, उसी प्रकार भरत भी अपने भीतर के शोक की अग्नि से संतप्त होकर अपने पूरे शरीर से पसीना बहाने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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