श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  2.78.26 
 
 
शत्रुघ्नविक्षेपविमूढसंज्ञां
समीक्ष्य कुब्जां भरतस्य माता।
शनै: समाश्वासयदार्तरूपां
क्रौञ्चीं विलग्नामिव वीक्षमाणाम्॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  शत्रुघ्न ने कुब्जा को घसीटा और पटका, जिससे वह मूर्छित हो गई। उसे इस हालत में देखकर भरत की माँ कैकेयी उसके पास गई और धीरे-धीरे उसे प्यार से सहलाते हुए होश में लाने की कोशिश करने लगी। उस समय कुब्जा पिंजरे में बंद क्रौंच पक्षी की तरह कैकेयी की ओर देख रही थी।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डेऽष्टसप्ततितम: सर्ग:॥ ७८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें अठहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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