श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  2.78.24 
 
 
भरतस्य वच: श्रुत्वा शत्रुघ्नो लक्ष्मणानुज:।
न्यवर्तत ततो दोषात् तां मुमोच च मूर्च्छिताम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत जी के वचन सुनकर लक्ष्मण के छोटे भाई शत्रुघ्न मंथरा के वधरूपी दोष से हट गए। लक्ष्मण ने मुर्छित अवस्था में ही मंथरा को छोड़ दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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