श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 75: कौसल्या के सामने भरत का शपथ खाना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  2.75.6 
 
 
आगत: क्रूरकार्याया: कैकेय्या भरत: सुत:।
तमहं द्रष्टुमिच्छामि भरतं दीर्घदर्शिनम्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  कैकेयी के पुत्र भरत क्रूर कर्म करने के लिए यहाँ आये हैं। वे दूर तक सोचने की क्षमता रखते हैं। इसलिए मैं उन्हें देखना और उनसे मिलना चाहती हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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