महात्मा भरत ने यह कहकर कैकेयी को प्यार से भरे शब्दों के साथ दुलारा, लेकिन वह शोक से पीड़ित थे और मन्दराचल पर्वत की गुफा में बैठे सिंह की तरह जोर-जोर से गरजने लगे।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे त्रिसप्ततितम: सर्ग:॥ ७३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें तिहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७३॥