श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 73: भरत का कैकेयी को धिक्कारना और उसके प्रति महान् रोष प्रकट करना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  2.73.28 
 
 
इत्येवमुक्त्वा भरतो महात्मा
प्रियेतरैर्वाक्यगणैस्तुदंस्ताम्।
शोकार्दितश्चापि ननाद भूय:
सिंहो यथा मन्दरकन्दरस्थ:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  महात्मा भरत ने यह कहकर कैकेयी को प्यार से भरे शब्दों के साथ दुलारा, लेकिन वह शोक से पीड़ित थे और मन्दराचल पर्वत की गुफा में बैठे सिंह की तरह जोर-जोर से गरजने लगे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे त्रिसप्ततितम: सर्ग:॥ ७३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें तिहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७३॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.