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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 73: भरत का कैकेयी को धिक्कारना और उसके प्रति महान् रोष प्रकट करना
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श्लोक 26
श्लोक
2.73.26
एष त्विदानीमेवाहमप्रियार्थं तवानघम्।
निवर्तयिष्यामि वनाद् भ्रातरं स्वजनप्रियम्॥ २६॥
अनुवाद
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देखो, मैं तुम्हारे अप्रिय काम के लिए ही अभी प्रस्थान कर रहा हूँ। मैं स्वजनों के प्रिय, निष्पाप भाई श्रीराम को वन से वापस लाऊँगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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