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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 73: भरत का कैकेयी को धिक्कारना और उसके प्रति महान् रोष प्रकट करना
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श्लोक 24
श्लोक
2.73.24
तवापि सुमहाभागे जनेन्द्रकुलपूर्वके।
बुद्धिमोह: कथमयं सम्भूतस्त्वयि गर्हित:॥ २४॥
अनुवाद
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हे महाभाग्यशाली ! तुम्हारा जन्म भी महाराज केकय के कुल में हुआ है, फिर तुम्हारे हृदय में यह निन्दित बुद्धिमोह कैसे उत्पन्न हो गया?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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