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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 73: भरत का कैकेयी को धिक्कारना और उसके प्रति महान् रोष प्रकट करना
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श्लोक 21
श्लोक
2.73.21
न हि मन्ये नृशंसे त्वं राजधर्ममवेक्षसे।
गतिं वा न विजानासि राजवृत्तस्य शाश्वतीम्॥ २१॥
अनुवाद
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हे कैकेयी! मुझे नहीं लगता कि तुम राजधर्म पर ध्यान देती हो या उसे बिलकुल जानती हो। तुम राजाओं के व्यवहार के शाश्वत स्वरूप को भी नहीं जानती हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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