श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 73: भरत का कैकेयी को धिक्कारना और उसके प्रति महान् रोष प्रकट करना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  2.73.16 
 
 
सोऽहं कथमिमं भारं महाधुर्यसमुद्यतम्।
दम्यो धुरमिवासाद्य सहेयं केन चौजसा॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  "यह राज्य का भार, जिसे धारण करने का सामर्थ्य महान योद्धाओं में ही होता है, मैं किस शक्ति के द्वारा धारण कर पाऊँगा? जिस प्रकार एक छोटा बछड़ा, बड़े-बड़े बैलों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल भार को नहीं खींच सकता, उसी प्रकार यह राज्य का महान भार मेरे लिए असहनीय है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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