श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 72: भरत का कैकेयी से पिता के परलोकवास का समाचार पा दुःखी हो विलाप करना,कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तान्त से अवगत होना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.72.27 
 
 
अभिषेक्ष्यति रामं तु राजा यज्ञं नु यक्ष्यते।
इत्यहं कृतसंकल्पो हृष्टो यात्रामयासिषम्॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  मैंने तो यह सोचा था कि महाराज यज्ञ का अनुष्ठान करेंगे और श्रीराम का राज्याभिषेक करेंगे —यही सोचकर मैंने बड़े हर्ष के साथ वहाँ से यात्रा की थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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