"हाय! मेरे पिताजी की यह अत्यंत सुंदर शय्या पहले मानसून की रात में चंद्रमा से सुशोभित होने वाले निर्मल आकाश की भाँति शोभा पाती थी। परन्तु आज वही शय्या उस बुद्धिमान राजा के बिना चंद्रमा से रहित आकाश और सूखे हुए समुद्र के समान श्रीहीन प्रतीत हो रही है।"