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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश
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श्लोक 45
श्लोक
2.71.45
तां शून्यशृङ्गाटकवेश्मरथ्यां
रजोरुणद्वारकवाटयन्त्राम्।
दृष्ट्वा पुरीमिन्द्रपुरीप्रकाशां
दु:खेन सम्पूर्णतरो बभूव॥ ४५॥
अनुवाद
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अयोध्यापुरी जो कभी स्वर्ग के देवराज इन्द्र की नगरी के समान शोभा पाती थी, आज उसी के चौराहे, घर और सड़कें सूनी पड़ी हैं। दरवाजों के किवाड़ों पर धूल-धूसर जम गई है। ऐसी दुर्दशा देखकर भरत पूरी तरह से दुख में डूब गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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