श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  2.71.28 
 
 
चन्दनागुरुसम्पृक्तो धूपसम्मूर्च्छितोऽमल:।
प्रवाति पवन: श्रीमान् किं नु नाद्य यथा पुरा॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  चंदन और अगरबत्ती की सुगंध से महकती हुई और धूप की मनभावन खुशबू से भरी हुई, निर्मल और मनमोहक समीर आज पहले की तरह क्यों नहीं बह रही है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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