श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  2.71.24 
 
 
अरण्यभूतेव पुरी सारथे प्रतिभाति माम्।
नह्यत्र यानैर्दृश्यन्ते न गजैर्न च वाजिभि:।
निर्यान्तो वाभियान्तो वा नरमुख्या यथा पुरा॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  सारथे! मुझे यह पूरी नगरी जंगल की तरह प्रतीत होती है। अब यहाँ पहले की तरह घोड़ों, हाथियों और अन्य श्रेष्ठ सवारियों से आते-जाते हुए श्रेष्ठ पुरुष नहीं दिखाई दे रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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