श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 69: भरत की चिन्ता, मित्रों द्वारा उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास तथा उनके पूछने पर भरत का मित्रों के समक्ष अपने देखे हुए भयंकर दुःस्वप्न का वर्णन करना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  2.69.9 
 
 
प्लवमानश्च मे दृष्ट: स तस्मिन् गोमये ह्रदे।
पिबन्नञ्जलिना तैलं हसन्निव मुहुर्मुहु:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  मैंने उन्हें गोबर के उस कुंड में तैरते हुए देखा था। वे हथेलियों में तेल लेकर उसे पी रहे थे और लगातार हँसते हुए दिखाई दे रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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