इमां च दु:स्वप्नगतिं निशम्य हि
त्वनेकरूपामवितर्कितां पुरा।
भयं महत् तुद् हृदयान्न याति मे
विचिन्त्य राजानमचिन्त्यदर्शनम्॥ २१॥
अनुवाद
मेरे मन में यह सोचकर बहुत भय समाया हुआ है कि मैंने जिन दुःस्वप्नों के बारे में पहले कभी सोचा भी नहीं था, वे सभी मुझे दिखाई दिए। साथ ही, राजा का दर्शन इस रूप में हुआ, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे एकोनसप्ततितम: सर्ग:॥ ६९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें उनहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ६९॥