न पश्यामि भयस्थानं भयं चैवोपधारये।
भ्रष्टश्च स्वरयोगो मे छाया चापगता मम।
जुगुप्सु इव चात्मानं न च पश्यामि कारणम्॥ २०॥
अनुवाद
मैं भय का कोई कारण नहीं देखता, फिर भी मैं भय में हूँ। मेरी आवाज़ बदल गई है और मेरी चमक भी फीकी पड़ गई है। मुझे अपने-आप से घृणा होने लगी है, लेकिन इसका कारण मुझे समझ नहीं आ रहा है। मेरा स्वर योग भ्रष्ट हो गया है और मेरी छाया मुझसे दूर हो गई है। मैं अपने आप को घृणित मानने लगा हूँ परन्तु इसका कारण मैं नहीं समझ पा रहा हूँ।