श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 67: मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मन्त्रियों का राजा के बिना होने वाली देश की दुरवस्था का वर्णन करके वसिष्ठजी से किसी को राजा बनाने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  2.67.23 
 
 
नाराजके जनपदे चरत्येकचरो वशी।
भावयन्नात्मनाऽऽत्मानं यत्र सायं गृहो मुनि:॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  जहाँ कोई राजा नहीं होता, उस जनपद में जहाँ सायं हो वहाँ डेरा डाल लेता है, और अपने अंतःकरण से परमात्मा का ध्यान करता है, ऐसा एकांत में विचरने वाला, जितेंद्रिय मुनि नहीं घूमता-फिरता है (क्योंकि उसे कोई भोजन देने वाला नहीं होता)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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