श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 67: मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मन्त्रियों का राजा के बिना होने वाली देश की दुरवस्था का वर्णन करके वसिष्ठजी से किसी को राजा बनाने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  2.67.16 
 
 
नाराजके जनपदे सिद्धार्था व्यवहारिण:।
कथाभिरभिरज्यन्ते कथाशीला: कथाप्रियै:॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  राजा के बिना राज्य में वादी और प्रतिवादी के बीच का विवाद संतोषजनक ढंग से नहीं सुलझ पाता है और व्यापारियों को भी लाभ नहीं होता है। कहानी सुनना पसंद करने वाले लोग कथावाचकों द्वारा सुनाई गई पौराणिक कथाओं से खुश नहीं होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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