श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 67: मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मन्त्रियों का राजा के बिना होने वाली देश की दुरवस्था का वर्णन करके वसिष्ठजी से किसी को राजा बनाने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.67.15 
 
 
नाराजके जनपदे प्रहृष्टनटनर्तका:।
उत्सवाश्च समाजाश्च वर्धन्ते राष्ट्रवर्धना:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  जब देश अराजकता और बिना किसी नियम-कायदे के चल रहा होता है, तो वहाँ पर राष्ट्र को उन्नतिशील बनाने वाले उत्सव, जिनमें नट और नर्तक खुशी में भरकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, बढ़ नहीं पाते हैं। साथ ही, अन्य राष्ट्रहितकारी संघ या संगठन भी पनप नहीं पाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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