श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 67: मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मन्त्रियों का राजा के बिना होने वाली देश की दुरवस्था का वर्णन करके वसिष्ठजी से किसी को राजा बनाने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  2.67.14 
 
 
नाराजके जनपदे महायज्ञेषु यज्वन:।
ब्राह्मणा वसुसम्पूर्णा विसृजन्त्याप्तदक्षिणा:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
   राजा के बिना किसी राज्य में यदि महायज्ञों का आयोजन भी हो जाता है, तब भी धनी ब्राह्मण यज्ञ कराने वालों को पर्याप्त दक्षिणा नहीं देते (क्योंकि उन्हें भय रहता है कि लोग उन्हें धनी समझकर लूट न लें)॥ १४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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