नराश्च नार्यश्च समेत्य संघशो
विगर्हमाणा भरतस्य मातरम्।
तदा नगर्यां नरदेवसंक्षये
बभूवुरार्ता न च शर्म लेभिरे॥ २९॥
अनुवाद
भीड़ में खड़े स्त्री और पुरुष मिलकर भरत की माता कैकेयी की निंदा करने लगे। उस समय महाराज दशरथ की मृत्यु से अयोध्यापुरी में रहने वाले सभी लोग शोक में डूबे हुए थे। कोई भी शांति नहीं पा रहा था।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे षट्षष्टितम: सर्ग:॥ ६६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें छाछठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ६६॥