श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 66: राजा के लिये कौसल्या का विलाप और कैकेयी की भर्त्सना, मन्त्रियों का राजा के शव को तेल से भरे हुए कड़ाह में सुलाना, पुरी की श्रीहीनता और पुरवासियों का शोक  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.66.27 
 
 
ऋते तु पुत्राद् दहनं महीपते-
र्नारोचयंस्ते सुहृद: समागता:।
इतीव तस्मिन् शयने न्यवेशयन्
विचिन्त्य राजानमचिन्त्यदर्शनम्॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  राजा के पुत्र के बिना ही उनका अंतिम संस्कार किए जाने की इच्छा वहाँ उपस्थित उनके मित्रों को बिलकुल पसंद नहीं आई। अब राजा का दर्शन करना असंभव हो गया था, ऐसा सोचते हुए उन्होंने उस तेल से भरे हुए कड़ाह में उनके शरीर को सुरक्षित रख दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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