गते तु शोकात् त्रिदिवं नराधिपे
महीतलस्थासु नृपाङ्गनासु च।
निवृत्तचार: सहसा गतो रवि:
प्रवृत्तचारा रजनी ह्युपस्थिता॥ २६॥
अनुवाद
राजा दशरथ शोक से व्याकुल होकर स्वर्ग सिधार गए और उनकी रानियाँ पृथ्वी पर ही शोक में डूबी रहीं। इस शोक के कारण अचानक सूर्य की किरणों का प्रसार बंद हो गया और सूर्यदेव अस्त हो गए। तत्पश्चात अंधकार फैलाती हुई रात्रि आ गई।