बाष्पपर्याकुलजना हाहाभूतकुलाङ्गना।
शून्यचत्वरवेश्मान्ता न बभ्राज यथापुरम्॥ २५॥
अनुवाद
शहर के सभी लोग आँसू बहा रहे थे। सती-सावित्री महिलाएँ विलाप कर रही थीं। चौराहे और घरों के द्वार सूने पड़े थे। (वहाँ झाड़ू लगाना, लीपना-पोतना और बलि चढ़ाना आदि क्रियाएँ नहीं होती थीं।) इस तरह वह नगरी पहले जैसी शोभा नहीं पाती।