श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 65: वन्दीजनों का स्तुतिपाठ, राजा दशरथ को दिवंगत हुआ जान उनकी रानियों का करुण-विलाप  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  2.65.27-28 
 
 
तत् परित्रस्तसम्भ्रान्तपर्युत्सुकजनाकुलम्।
सर्वतस्तुमुलाक्रन्दं परितापार्तबान्धवम्॥ २७॥
सद्योनिपतितानन्दं दीनं विक्लवदर्शनम्।
बभूव नरदेवस्य सद्म दिष्टान्तमीयुष:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  राजा दशरथ के निधन के पश्चात् उनका भवन भयभीत, घबराए हुए और अत्यंत उत्सुक लोगों से भर गया। हर ओर रोने-चिल्लाने का भयानक शब्द होने लगा। वहाँ राजा के सभी रिश्तेदार शोक-संताप से पीड़ित होकर एकत्रित हुए। वह पूरा महल तुरंत आनंद शून्य हो गया और दु:खी और व्याकुल दिखाई देने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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