श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 65: वन्दीजनों का स्तुतिपाठ, राजा दशरथ को दिवंगत हुआ जान उनकी रानियों का करुण-विलाप  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  2.65.23 
 
 
सा कोसलेन्द्रदुहिता चेष्टमाना महीतले।
न भ्राजते रजोध्वस्ता तारेव गगनच्युता॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  कोसलराज की पुत्री कौशल्या धरती पर लोटने और छटपटाने लगी। उनका धूल-धूसरित शरीर शोभाहीन दिखने लगा, मानो आकाश से टूटकर गिरा हुआ कोई तारा धूल में लोट रहा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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