निष्प्रभासा विवर्णा च सन्ना शोकेन संनता।
न व्यराजत कौसल्या तारेव तिमिरावृता॥ १७॥
अनुवाद
कौसल्या जी सोते हुए श्रीहीन हो गयी थीं। उनके शरीर का रंग बदल गया था। शोक से पराजित एवं पीड़ित होकर वे अन्धकार से आच्छादित हुई तारिका के समान शोभा नहीं पा रही थीं।