श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 65: वन्दीजनों का स्तुतिपाठ, राजा दशरथ को दिवंगत हुआ जान उनकी रानियों का करुण-विलाप  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  2.65.14 
 
 
ता: स्त्रिय: स्वप्नशीलज्ञाश्चेष्टां संचलनादिषु।
ता वेपथुपरीताश्च राज्ञ: प्राणेषु शङ्किता:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  स्त्रियाँ सोए हुए राजा की स्थिति को अच्छी तरह जानती थीं जो गतिहीन थी, इसलिए उन्होंने हृदय और हाथ में चलने वाली नाड़ियों की भी जाँच की। उनमें भी कोई हरकत नहीं दिखी। तब वे कांप उठीं और उनके मन में राजा के प्राणो के निकल जाने की आशंका हो गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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