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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 64: राजा दशरथ का अपने द्वारा मुनि कुमार के वध से दुःखी हुए उनके मातापिता के विलाप और उनके दिये हुए शाप का प्रसंग सुनाकर अपने प्राणों को त्याग देना
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श्लोक 23
श्लोक
2.64.23
क्षत्रियेण वधो राजन् वानप्रस्थे विशेषत:।
ज्ञानपूर्वं कृत: स्थानाच्च्यावयेदपि वज्रिणम्॥ २३॥
अनुवाद
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नरेश्वर! यदि कोई क्षत्रिय जानबूझकर और विशेष तौर पर किसी वानप्रस्थी की हत्या करता है, तो वह वज्रधारी इन्द्र ही क्यों न हो, उसे अपने पद से भ्रष्ट होना पड़ता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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