श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 64: राजा दशरथ का अपने द्वारा मुनि कुमार के वध से दुःखी हुए उनके मातापिता के विलाप और उनके दिये हुए शाप का प्रसंग सुनाकर अपने प्राणों को त्याग देना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.64.17 
 
 
ततस्तस्यैव वचनादुपेत्य परितप्यत:।
स मया सहसा बाण उद्‍धृतो मर्मतस्तदा॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय वे बहुत पीड़ा में थे और उन्होंने मुझे बाण निकालने को कहा। मैंने तुरंत उनके मर्म-स्थान से बाण निकाल दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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