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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 63: राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनि कुमार के मारे जाने का प्रसङ्ग सुनाना
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श्लोक 34-35h
श्लोक
2.63.34-35h
तस्याहं करुणं श्रुत्वा ऋषेर्विलपतो निशि॥ ३४॥
सम्भ्रान्त: शोकवेगेन भृशमासं विचेतन:।
अनुवाद
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ऋषि के विलाप के करुण वचन सुनकर मैं रातों-रात शोक के वेग से घबरा गया। मेरी चेतना अत्यधिक विलुप्त होने लगी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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