श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 63: राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनि कुमार के मारे जाने का प्रसङ्ग सुनाना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  2.63.23 
 
 
ततोऽहं शरमुद‍्धृत्य दीप्तमाशीविषोपमम्।
शब्दं प्रति गजप्रेप्सुरभिलक्ष्यमपातयम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  तब मैंने समझ लिया कि हाथी ही अपनी सूंड में पानी खींच रहा होगा; इसलिए, वही मेरे बाण का निशाना बनेगा। मैंने तरकस से एक तीर निकाला और उस शब्द की दिशा में चला दिया। वह तीर दीप्तिमान था और विषधर सर्प के समान भयंकर था। मैंने उसे हाथी को मारने के इरादे से चलाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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