श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 63: राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनि कुमार के मारे जाने का प्रसङ्ग सुनाना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  2.63.22 
 
 
अथान्धकारे त्वश्रौषं जले कुम्भस्य पूर्यत:।
अचक्षुर्विषये घोषं वारणस्येव नर्दत:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। तभी मुझे अचानक पानी में घड़ा भरने की आवाज़ आई। मैं वहाँ तक देख नहीं सकता था, लेकिन वह आवाज़ मुझे हाथी के पानी पीते समय निकलने वाली आवाज़ जैसी लग रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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