श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 63: राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनि कुमार के मारे जाने का प्रसङ्ग सुनाना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.63.18 
 
 
पतितेनाम्भसाऽऽच्छन्न: पतमानेन चासकृत्।
आबभौ मत्तसारङ्गस्तोयराशिरिवाचल:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  मत्त हाथी बार-बार पानी में गिरता हुआ और पानी से ढका हुआ, शांत प्रशांत समुद्र और गीले पर्वत की तरह दिखाई दे रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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