श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 63: राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनि कुमार के मारे जाने का प्रसङ्ग सुनाना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.63.17 
 
 
क्लिन्नपक्षोत्तरा: स्नाता: कृच्छ्रादिव पतत्त्रिण:।
वृष्टिवातावधूताग्रान् पादपानभिपेदिरे॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  वृष्टि और तेज हवा चलने से पक्षियों के पंख भीग गए थे और वे भीगने से बोझिल हो गए थे। इसलिए वे पेड़ों की डालियों तक पहुँचने के लिए बहुत मुश्किल से उड़ पा रहे थे। पेड़ों की डालियाँ भी वर्षा और हवा के झोंकों से झूल रही थीं, जिससे पक्षियों के लिए उन पर बैठना और भी मुश्किल हो गया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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